News Analysis : कुछ बातें अच्छी आती हैं नजर बशर्ते अमल हो उन पर

Today’s Editorial (Hindi)

आम बजट की शुरुआत लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के अस्वाभाविक हस्तक्षेप के साथ हुई। उन्होंने कहा कि महाराष्ट के एक भाजपा सांसद का निधन हो गया है लेकिन सदन का काम जारी रहेगा। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जैसे ही भाषण देना शुरू किया, राजस्थान में अजमेर और अलवर लोकसभा उपचुनाव और एक विधानसभा सीट के उपचुनाव के नतीजे भी आ गए। भाजपा को इनमें हार का सामना करना पड़ा और ये नतीजे वित्त मंत्री के बजट भाषण पर शेक्सपियर के नाटक के प्रेत के समान मंडराते रहे। पत्रकार प्रणय रॉय ने कहा कि यह उनकी नजर से गुजरा सबसे व्यापक दायरे वाला बजट है। चूंकि उन्हें भी बजट विश्लेषण करते दशकों हो गए इसलिए उनकी बात मायने रखती है।

प्रधानमंत्री ने अभी कुछ दिन पहले कहा था कि औसत भारतीय लुभावनी चीजें नहीं चाहता लेकिन बजट की शुरुआत इसी के साथ हुई। गैस कनेक्शनशौचालयबल्बगोबरवाईफाई हॉटस्पॉट से लेकर बांस उगाने तक से जुड़ी योजनाओं के लिए फंड की घोषणा की गई। जेटली बहुत अच्छे वक्ता नहीं हैं। मोदी की तुलना में तो वह खासे साधारण नजर आते हैं। ऐसे में उन्हें घंटे भर से अधिक समय तक सुनना भी दुरुह कार्य है। शायद यही वजह है कि उनके भाषण के तत्काल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजट के बारे में बात रखने के लिए मोर्चा संभाल लिया। उन्होंने किसानों और स्वास्थ्य बीमा योजना जैसे दो अहम मुद्दों पर बात रखी।

मोहम्मद अली जिन्ना के बारे में यह कहा जाता था कि वह बहुत अच्छे वकील नहीं थे लेकिन पैरोकारी में उनका तोड़ नहीं था। वह अपने भाषण से लोगों को भरोसे में ले लेते थे। जेटली के मामले में बात उलटी हैवह अधिवक्ता अच्छे हैं जबकि प्रभावित कर पाने के मामले में कमजोर। उन्होंने आर्थिक मोर्चे पर अपनी सरकार के प्रदर्शन का बचाव किया लेकिन सत्ता पक्ष के लोग भी नोटबंदी की सराहना करने को उत्सुक नहीं दिखे। शब्दाडंबर के जरिये इस तथ्य को छिपा लिया गया कि भारत का प्रदर्शन उसकी क्षमता के मुताबिक नहीं रहा है। कहा गया कि हम मध्यम और दीर्घावधि में मजबूत वृद्घि हासिल करने के लिए तैयार हैं और 8 फीसदी की वृद्घि दर हासिल करने को भी। हालांकि यह नहीं बताया गया कि ऐसा कब तक होगा।

जेटली खासतौर पर हिंदी बोलते हुए असहज नजर आते हैं। इस भाषण में वह हिंदी बोलते नजर आए, या फिर शायद उनसे ऐसा करने को कहा गया था। एक पाकिस्तानी शायर ने एक बार कहा था कि जब एक पंजाबी व्यक्ति उर्दू बोलता है तो ऐसा लगता है मानो वह झूठ बोल रहा हो। जेटली के बारे में भी कहा जा सकता है कि वह हिंदी में उतने प्रेरक नहीं नजर आते। उनकी सांस साथ छोड़ देती है और वाक्य समाप्त होने पर उनकी आवाज फट जाती है। वह ‘एकलव्य’ बोलते समय तीन बार लडख़ड़ाए और विपक्षी दलों ने मजाक भी उड़ाया। अनुपजाऊ जमीन के लिए अंग्रेजी शब्द का चयन करने में भी असहज नजर आए और अंतत: गलत ही बोल गए। लोगों का जीवन बदल देने वाली चकाचौंध भरी योजनाओं की घोषणा करते वक्त जिस वाक चातुर्य की आवश्यकता होती है वह नदारद नजर आया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार अति उत्साह से अपनी मेज थपथपाते नजर आए। वह शायद यह जोर देना चाह रहे थे कि बजट में कुछ बड़ी घोषणाएं की जा रही हैं। जेटली ने कहा कि कारोबारी सुगमता के मोर्चे पर सफलता हासिल होने के बाद सरकार अब लोगों का जीवन सुगम (ईज ऑफ लिविंग) बनाने की दिशा में काम करेगी। जेटली ने गोबरधन नामक शब्द भी गढ़ा जो गाय के गोबर से जुड़ी एक योजना से संबंधित है। यह नाम कृष्ण से जुड़े गोवर्धन पर्वत से भी मेल खाता है। यह पूरी शाब्दिक कलाकारी जेटली की कम मोदी की ज्यादा नजर आती है।

बात करते हैं स्वास्थ्य योजना की। बतौर नागरिक समाज के एक सदस्य मैं इस बात को लेकर प्रसन्न हूं कि बजट में इसे इतनी अहमियत दी गई। किसी की राजनीतिक पक्षधरता चाहे जो हो लेकिन हमें इस बात की सराहना करनी चाहिए कि ढेर सारा धन समाज के सबसे कमजोर और वंचित वर्ग के स्वास्थ्य पर व्यय किया जाएगा। जेटली ने कहा कि इस घोषणा का लाभ 50 करोड़ से ज्यादा लोगों को मिलेगा। बाद में प्रधानमंत्री ने भी दोहराया कि यह दुनिया का सबसे बड़ा सरकारी कार्यक्रम है (ब्रिटेन की बेहतरीन राष्टï्रीय स्वास्थ्य सेवा और अमेरिका की मेडिकेयर और मेडिकेड से भी? व्यय के मामले में तो नहीं लेकिन कवरेज के मामले में हां)। विपक्षी दलों ने इस घोषणा को लेकर अपना विरोध दर्शाया।

यह जानना रोचक होगा कि आखिर वे किस बात का विरोध कर रहे थे? कुछ लोग इस योजना को ऐसे भी देख सकते हैं मानो राज्य अपना अधिकार त्याग रहा हो। अच्छे अस्पतालों तक कई भारतीयों की पहुंच नहीं है ऐसे में जरूरी नहीं कि बीमा योजना उनके लिए राहत लाए। एमआईटी के एश्टर डफलो और अभिजीत बनर्जी द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला कि 97 फीसदी संभावना है कि एक सरकारी चिकित्सक आपकी बीमारी का गलत पता लगाए। मरीजों को निजी चिकित्सालय जाने को कहने के बजाय कोशिश यह की जानी चाहिए कि सरकारी चिकित्सक अपना काम ठीक से करें। इन तमाम बातों के बीच सरकार का इस विषय को ध्यान में रखना अपने आप में उत्साहवर्धक बात है।

गांवों में 1.50 लाख वेलनेस सेंटर खोलने की घोषणा भी मेरे लिए उतनी ही महत्त्वपूर्ण है। इन दोनों योजनाओं के विस्तृत ब्योरों की प्रतीक्षा है लेकिन अगर इनके लिए किया जाने वाला आवंटन घोषणा से मेल नहीं खाता है तो जुमलेबाजी के आरोप नए सिरे से लगाए जाने लगेंगे। एक अन्य घोषणा जिसकी मैं प्रतीक्षा कर रहा था वह दरअसल की ही नहीं गई। वह घोषणा रक्षा बजट से संबंधित थी। रक्षा बजट के नाम पर हमारे राजकोष से रोज करीब 1,000 करोड़ रुपये की राशि निकल जाती है। जेटली ने इसका कोई उल्लेख नहीं किया। उम्मीद की जानी चाहिए कि इसमें तगड़ी कटौती की गई होगी।

 

आखिर में इस बजट से क्या तात्पर्य निकलकर आता है? यह शायद शेयर बाजार समेत ज्यादातर लोगों को समझ में नहीं आया। शुरुआती 15 मिनट के बाद सेंसेक्स में 250 अंकों की उछाल आई थी। आधे घंटे बाद उसमें गिरावट शुरू हुई और एक घंटे बाद वह ऋणात्मक हो गया। इसके बाद जब लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ कर की घोषणा की गई तो यह 400 अंक गिर गया। बजट की व्याख्या शुरू होने के बाद यह फिर सुधरा लेकिन अंतत: नकारात्मक ही बंद हुआ। संभव है बाजार राजस्थान में भाजपा को लगे झटके पर भी प्रतिक्रिया दे रहा हो। 2014 में पार्टी को राज्य की सभी 25 लोकसभा सीटों और गुजरात में सभी 26 सीटों पर जीत मिली थी। हालिया नतीजे बताते हैं कि अगले साल यह दोहराया नहीं जाएगा। ऐसे में मोदी का दोबारा बहुमत हासिल करना मुश्किल दिख रहा है। क्या यह बजट हिंदी प्रदेश के मोहभंग को पलटने में कामयाब होगा? मोदी तो यही उम्मीद कर रहे होंगे।

स्रोत: द्वारा आकार पटेल: बिज़नेस स्टैण्डर्ड

 

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