News Analysis :नमामि गंगे परियोजना में क्या हैं अड़चनें

Today’s Editorial (Hindi)

 

देश की सबसे पवित्र नदी गंगा को फिर से स्वच्छ एवं निर्मल बनाने के लिए शुरू की गई नमामि गंगे परियोजना की सुस्त रफ्तार की एक मुख्य वजह यह है कि इसमें लगातार गंदे पानी की आवक हो रही है। गंगा तट के आसपास के शहरों को लगातार कहा जा रहा है कि वे गंदे पानी को साफ करने के लिए संयंत्र लगाएं। लेकिन इसके बावजूद उन शहरों का गंदा पानी बिना शोधन के नदी में गिर रहा है। जल शोधन संयंत्रों को लगाने और चलाने की ऊंची लागत उन प्रमुख वजहों में से एक है, जिसकी वजह से ये शहर गंदे पानी को गंगा में छोडऩे से पहले साफ करने में कम दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

इस समस्या से पार पाना काफी हद तक संभव है। यह काम ज्यादा लागत और दिक्कत वाली वर्तमान परंपरागत तरल-अपशिष्ट शोधन पद्धति के स्थान पर गंदे पानी को साफ करने की आसान और किफायती तकनीक से संभव है। यह तकनीक नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के जल प्रौद्योगिकी केंद्र (डब्ल्यूटीसी) ने विकसित की है।  इस नई जैविक जल शोधन तकनीक में पेड़-पौधों एवं कई सूक्ष्म जीवों का इस्तेमाल किया जाता है, जिनमें अशुद्धताओं को अवशोषित करने और पानी को शुद्ध बनाने का कुदरती गुण होता है। इससे 50 से 65 फीसदी लागत तो बचती ही है। साथ ही इससे गंदे जल को साफ करने के काम को लाभप्रद बनाने के लिए राजस्व भी मिलता है। सबसे अहम बात यह है कि इसमें किसी रसायनऊर्जाकुशल कर्मचारियों और किसी इनपुट की जरूरत नहीं होती। केवल पौधों का बीजरोपण करना होता है। इस प्रणाली में इस्तेमाल किया जाने वाला सदाबहार पौधा टाइफा लाटीफोलिया है। इस पौधे में प्रदूषक तत्त्वों को अवशोषित करने और अपनी जड़ों के आसपास पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने और गंदे पानी को साफ करने का कुदरती गुण होता है।

यह पौधा जल को शुद्ध बनाने वाले सूक्ष्म जीवों के प्रसार को बढ़ाने में भी मददगार है, जिससे जल की गुणवत्ता को सुधारने के लिए रसायनों और जल में ऑक्सीजन बढ़ाने वाले उपकरणों की कोई जरूरत नहीं होती है। परंपरागत गंदा जल शोधन संयंत्रों में रसायनों और ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने वाले उपकरणों का ही इस्तेमाल होता है। नई प्रणाली में 80 से 99 फीसदी तक धातु अंश भी खत्म हो जाता है।यह परंपरागत तरीकों से संभव नहीं है। नई तकनीक को विकसित करने में अहम भूमिका निभाने वालीं डब्ल्यूटीसी परियोजना निदेशक रवींद्र कौर अशुद्धता दूर करने में टाइफा पौधों और उनसे जुड़े सूक्ष्म जीवों को किडनी के समान बताती हैं। कौर के मुताबिक गंगा में छोड़े जा रहे गंदे जल को डब्ल्यूटीसी तकनीक की मदद से साफ करने की कुल लागत केवल 1,300 करोड़ रुपये आएगी, जो परंपरागत तरीकों से करीब 10,430 करोड़ रुपये आएगी।  इसके अलावा डब्ल्यूटीसी शोधन संयंत्र लगाने के लिए जमीन की जरूरत परंपरागत संयंत्रों की तुलना में बहुत कम होगी। इसके अलावा पर्यटकों को लुभाने के लिए इन संयंत्रों को पर्यावरण अनुकूल ईको-पार्क में तब्दील किया जा सकता है क्योंकि इन नदियों में प्रवासी पक्षी बड़ी तादाद में आते हैं।

सामान्य गंदा जल शोधन संयंत्रों में बदबू आती है, लेकिन नई तकनीक आधारित संयंत्रों में कोई बदबू नहीं आती है। इसकी वजह यह है कि जल की अशुद्धता दूर करने की प्रक्रिया मिट्टी की सतह के नीचे होती है, जिसमें रसायनों का कोई इस्तेमाल नहीं होता है। ये रसायन ही बदबूदार गैसें उत्सर्जित करते हैं। नई प्रणाली की एक काबिलेगौर चीज यह भी है कि यह टाइफा आधारित संयंत्र गाद पैदा करने के बजाय जैव ईंधन पैदा करता है, जिसे स्वच्छ ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने के लिए अच्छी गुणवत्ता के पार्टिकल बोर्ड या एनर्जी ब्रिकेट और पेलेट में तब्दील किया जा सकता है। इस उद्देश्य के लिए टाइफा के ऊपरी हिस्सों को हर चार माह बाद काटा जा सकता है। यह पौधा फिर से बढ़ जाता है।

 

इसके अलावा नई तकनीक आधारित गंदा जल शोधन संयंत्रों में मत्स्यपालन को शामिल कर आर्थिक प्रतिफल बढ़ाया जा सकता है। मछलियों के लिए पोषक आहार प्लैंगटन और जूप्लैंगटन इन इकाइयों के तालाबों में खूब फलते-फूलते हैं।  मत्स्यपालन अनुसंधान संस्थान के साथ मिलकर किए गए प्रयोगों में यह सामने आया है कि ऐेसे समन्वित गंदा जल शोधन उद्यमों में मछलियों का उत्पादन तुलनात्मक रूप से अधिक और अच्छी गुणïवत्ता का होता है। यह मछली उत्पादन जहरीले अंशों से मुक्त होता है। अपने कई फायदों की वजह से डब्ल्यूटीसी गंदा जल शोधन तकनीक ने 2017 में स्कॉच प्लैटिनम पुरस्कार जीता है। यह प्रतिष्ठित नागरिक पुरस्कार बड़ा बदलाव लाने वाले नवोन्मेष के लिए दिया जाता है। इससे पहले संसद की कृषि पर स्थायी समिति ने इस तकनीक की उपयोगिता से सहमति जताई और दिसंबर2014 में  संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में इसे देशभर में इस्तेमाल किए जाने की ‘पुरजोर सिफारिश’ की। शहरी विकास मंत्रालय ने भी 420 शहरों को भेजी सलाह में गंदे जल के शोधन में इस तकनीक के इस्तेमाल की सिफारिश की थी। अब नमामि गंगे परियोजना को गंगा की स्वच्छता एवं निर्मलता बहाल करने के लिए इस तकनीक का लाभ उठाना चाहिए

स्रोत: द्वारा सुरिंदर सूद: बिज़नेस स्टैण्डर्ड

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