Today’s Editorial (Hindi)
सरकार के स्तर पर कम व्यय के चलते कुल स्वास्थ्य परिव्यय का करीब दो-तिहाई लोगों को सीधे अपनी जेब से व्यय करना पड़ता है. स्वास्थ्य संबंधी खर्चों के चलते सालाना अनुमानत: 63 से 80मिलियन भारतीय गरीबी की गिरफ्त में जा फंसते हैं. यह स्थिति सरकार द्वारा गरीबी उन्मूलन के लिए किए जाने वाले प्रयासों में खामी को रेखांकित करती है. बीते दो दशकों में स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकार के स्तर पर निवेश बढ़ाने के लिए एक के बाद एक प्रस्ताव पेश किए गए ताकि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का कम-से-कम 2.5 से 3% स्वास्थ्य क्षेत्र पर व्यय किया जा सके.
1990 के दशक के मध्य में यह आंकड़ा करीब 0.9% था, लेकिन इस व्यय में वास्तविक वृद्धि सीमांत ही रहीI 2013-14 में यह जीडीपी के 1.15% तक ही पहुंच सकी, प्राय: हुआ यह है कि वित्त मंत्रालय ने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटन बढ़ाने से इनकार ही किया. कहते हुए कि भारतीय राज्यों की वित्तीय क्षमता इसका भार उठाने में सक्षम नहीं है, और न ही स्वास्थ्य क्षेत्र अपेक्षित रूप से इतना कुशल है. कुछेक चुनिंदा सरकारी संस्थानों में कुछ ऐसे विशेषज्ञ और नीति-निर्माता हैं, जो सोचे-समझे अंदाज में इस विचार को रखते रहे हैं कि स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकार के स्तर पर ज्यादा ऊंचे निवेश की जरूरत नहीं है, बल्कि जरूरी यह है कि मौजूदा संसाधनों के उपयोग में ‘दक्षता’ बरती जाए. कुछ अन्य ऐसे भी रहे जिनने सलाह दी कि स्वास्थ्य पर निवेश करने की बजाय सरकार को गरीबों को नकदी का स्थानांतरण करना चाहिए. इससे वे मनमाफिक स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय कर सकेंगे और जिसके फलस्वरूप इस क्षेत्र की कार्यकुशलता में बाजार तंत्र और प्रतिस्पर्धा के जरिए सुधार आ जाएगा. लेकिन यह चर्चा अपनी प्रकृति में ही ‘दोहरी सोच’ वाली दिखाई पड़ती है.
एक तरफ कुछ लोग जहां कार्यकुशलता में बढ़ोतरी की बात कह रहे हैं, तो दूसरी कुछ लोग हैं, जो सरकार के स्तर पर निवेश बढ़ाने का तर्क रख रहे हैं. संतुलित तरीके से बढ़ने की बात कहने वालों, हालांकि ऐसा भी नहीं है कि वे संख्या में कम हैं, को दरकिनार कर दिया गया है. गहराई से देखें तो पाएंगे कि भारत में स्वास्थ्य पर सरकार का व्यय जीडीपी का 1.15% (वैश्विक औसत 6% है, और चीन व थाईलैंड जीडीपी का 3.0% से ज्यादा व्यय करते हैं) है. प्रति व्यक्ति व्यय के मद्देनजर यह खर्च 20 अमेरिकी डॉलर है, जो चीन और थाईलैंड द्वारा किए जाने वाले व्यय के आठवें हिस्से भी कम है. तो कहने की जरूरत नहीं रह जाती कि भारत अन्य देशों के मुकाबले मामूली खर्च करके भारत उनके जैसे नतीजे हासिल नहीं कर सकता.
भारत की नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (एनएचपी), 2017 इस पहलू के मद्देनजर प्रगतिशील है, और 2025 तक स्वास्थ्य क्षेत्र पर जीडीपी का 2.5% व्यय करने की बात कहती है. फिर, डेढ़ लाख स्वास्थ्य उपकेंद्रों को ‘हेल्थ एंड वेलनेस’ केंद्रों में तब्दील करने, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में मानव संसाधन बढ़ाने और असंक्रमणीय रोगों जैसे मामलों में सेवाएं बढ़ाने के लिए सरकार की ओर से अतिरिक्त वित्तीय संसाधन मुहैया कराने की दरकार होगी. मेडिकल कॉलेजों के सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलेंडरों का भुगतान न होने जैसे कारणों से सेवाओं में कोताही होती है, तो वित्तीय संसाधन की कमी होना इसका एक बड़ा कारण है. जहां तक स्वास्थ्य क्षेत्र के कम कुशल होने की बात है, तो भारत में अन्य सामाजिक क्षेत्रों की भांति स्वास्थ्य क्षेत्र के मामले में भी सही है. मैकिन्से एंड कंपनी की 2014 में आई रिपोर्ट में कहा गया था कि स्वास्थ्य क्षेत्र भारत में सर्वाधिक कम कुशल सामाजिक क्षेत्रों में शुमार है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की विश्व स्वास्थ्य रिपोर्ट, 2010 में स्वास्थ्य क्षेत्र में अदक्षता के 10 प्रमुख कारण गिनाए गए हैं.
इनमें से चार का संबंध उपकरणों के उपयोग, जांच और प्रक्रियाओं; देखभाल की कम गुणवत्ता; ढांचागत सेवाओं के आकार और अपर्याप्त उपयोग; तथा अस्पताल में दाखिले और वहां उपचाराधीन रहने की अवधि से था, जबकि तीन का संबंध दवाओं (जेनरिक्स का कम उपयोग तथा कम गुणवत्ता की दवाओं का उपयोग तथा दवाओं का अपर्याप्त और अप्रभावी इस्तेमाल) से था, जबकि बाकी दो कारण रहे अपर्याप्त रणनीतियां; स्वास्थ्य कार्यकर्ता (अपर्याप्त संख्या में, निरुत्साही और महंगे) तथा छीजन (भ्रष्टाचार, घोटाले तथा संसाधनों की बर्बादी). विशेषज्ञों का मानना है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में पसरी अकुशलता का समाधान किया जाना जरूरी है, लेकिन ‘अकेले कुशलता’ से ही काम नहीं चलने वाला. इसके साथ निवेश नहीं बढ़ाया जाता है, तो यह कारगर नहीं रहने वाली. स्वास्थ्य राज्यों का विषय है. संविधान में ऐसी व्यवस्था है. स्वास्थ्य क्षेत्र में कुल सरकारी व्यय का दो-तिहाई राज्य सरकारें वहन करती हैं. इसलिए केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारें, दोनों को स्वास्थ्य पर अपना व्यय बढ़ाना होगा. एनएचपी, 2017 में प्रस्ताव है कि 2020 तक राज्य अपने कुल बजट परिव्यय का 8% स्वास्थ्य पर खर्च करें. अभी राज्यों द्वारा इस मद पर व्यय किए जाने वाला औसत व्यय करीब 5% है.
एक भी राज्य ऐसा नहीं है, जो अपने बजट का 8% इस मद पर व्यय करता हो. यदि एनएचपी 2017 के लक्ष्य को हासिल करना है, तो प्रत्येक राज्य के सर्वोच्च नेतृत्व को राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी होगी. इसके साथ ही वित्तीय और प्रशासनिक सुधारों की ओर पर भी ध्यान देना होगा. केवल आवंटन से ही काम नहीं चलता. केंद्र सरकार की ‘स्मार्ट सिटीज मिशन’ के नतीजों से स्पष्ट होता है कि इस योजना के लिए आवंटित कुल धन का 7% से भी कम व्यय किया जा सका. सो, स्वास्थ्य क्षेत्र में ज्यादा धन मुहैया कराने के साथ वित्तीय-प्रशासनिक सुधारों पर भी ध्यान देना होगाI
स्रोत: द्वारा चंद्रकांत लहारिया: राष्ट्रीय सहारा