Today’s Editorial (Hindi)
बदलते वैश्विक माहौल में आर्थिक मजबूती ही देश की एकता के लिए अहम है. खुलेपन की अर्थव्यवस्था को अपना कर चीन उत्तरोतर मजबूत हुआ और न अपना कर सोवियत रूस ग्यारह देशों का समूह बन गया. आज एफडीआई के महत्त्व को रूस भी समझता है. चीन पहले से और भी अधिक समझता है. एफडीआई में लगातार सुधारों एवं नए-नए सेक्टरों में निवेश खोलने में भारत एक बड़े और आत्मविश्वास से लबरेज़ देश की तरह व्यवहार कर रहा है. वह विश्व के सबसे बड़े उभरते बाज़ारों में से एक होने के अलावा, कम उम्र एवं तकनीकी ज्ञान संपन्न नवयुवकों का देश है. दब्बूपन और संरक्षणवादी नीतियों को ओढ़ कर भारत अब नहीं बैठा है. आज हम विश्व भर के देशों के उपग्रहों को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करते हैं. हमने देसी तकनीक विकसित की और विदेशियों को अपनी सेवाएं बेचीं. यह आत्मविश्वास हमारे ब्रांड को उन्नत करता है और विदेशी निवेश अच्छा देश बनाता है.
एफडीआई ऋण नहीं होता है. भागीदारिता होता है, जब तक विदेशी निवेशकों को विश्वास नहीं होगा कि उन्हें उनके निवेश पर लाभ होगा वह भारत में आने से हिचकिचाएंगे कम मूल्य पर श्रम की उपलब्धता और करों में सुविधा भी इस आकषर्ण को बढ़ाने में सहायक है. हमें समझना होगा कि हमारी सबसे बड़ी शक्ति हमारा यंग होना है. जापान-चीन बूढ़े लोगों के देश हैं. भारत असल में यंग इंडिया है मगर यही हमारी सबसे बड़ी चिंता का विषय भी है. हमने इस यंग जनरेशन को रोजगार देना है. डबल डिजिट ग्रोथ के बिना सबको रोजगार शायद संभव न होगा.
बैंक ऋण आधारित अर्थव्यवस्था विकासशील बनाये रख सकती है मगर विकसित अर्थव्यवस्था ‘वित्तीय दलाली’ पर नहीं टिक सकती. ‘बैंक ऋण’ उद्यमिता के लिए अच्छा ईधन नहीं है, वह भीगा हुआ कोयला भर है इससे विकास का इंजिन स्पीड नहीं पकड़ सकता. तेज़ विकास के लिए ‘भागीदार पूंजी’ की आवश्यकता है. ‘इक्विटी कैपिटल’ ही वह ईधन है, जो इस रफ्तार को हासिल करवा सकता है. हर बिजनेस एक जोखिम से भरा हुआ खेल होता है, जिसमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं. बिजनेस चक्र में उतार के समय बैंक-कर्ज खुद ही बड़ा जोखिम बन जाता है. प्रोमोटरों का सारा समय और शक्ति बिजनेस को संभालने के स्थान पर बैंकों को संतुष्ट करने में ही नष्ट हो जाता है.
बहुत सारे बिजनेस इसी वजह से खराब हुए हैं. यह एक शोध का विषय है कि क्या वाकई बैंकों को अपने वर्तमान फॉर्मेट में कार्य करना चाहिए. उद्यमियों को वैकल्पिक वित्त को उपलब्ध करना और वह भी जहां तक हो सके साझा जोखिम आधारित होना एक बड़ी आवश्यकता है. नए ऑर्बिट में जाने के लिए अलग तरह के राकेट की जरूरत है. निश्चित रूप से वह राकेट बैंक नहीं है, वह राकेट है स्टॉक मार्किट.2017 में आईपीओ द्वारा 36 कंपनियों ने 67147 करोड़ रुपये जुटाया है. इन कंपनियों को इस पैसे पर कोई ब्याज नहीं देना. न ही ये पैसा वापिस करना है. एनपीए की समस्या का सच्चा निदान है-इक्विटी कैपिटल से डेट कैपिटल को स्थान्तरित करना. ये 36 कंपनियां अपने बिजनेस पर अच्छे से फोकस कर सकती हैं. मगर ये सिर्फ एक बहुत छोटा-सा इशारा भर है.
यही है वह ईधन जिसकी देश को आवश्यकता है, जब तक ये ईधन हम उपलब्ध नहीं कराते, सरकार के पास इस ईधन को आयात करने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचता. एफडीआई सिर्फ ‘इम्पोर्ट ऑफ़ इक्विटी कैपिटल’ ही है इसका विरोध उचित नहीं. हमें स्वयं वह ईधन उपलब्ध कराना चाहिए. यह एक तरह की देश सेवा ही है. एफडीआई का विरोध ऐसा ही है जैसे हम क्रूड ऑयल के इम्पोर्ट का विरोध करें क्योंकि वह हमारे यहां नहीं होता, 80% इम्पोर्ट होता है. अब चूंकि बहुमूल्य विदेशी मुद्रा का अपव्यय होता है. लिहाजा, क्रूड ऑयल का आयात बंद किया जाए क्या ये संभव है? ये जरूरी बीमारी है. विकास के लिए क्रूड आयल एवं एफडीआई दोनों जरूरी हैं. दोनों का एक इलाज़ है घरेलू उत्पादन बढ़ाया जाए.
हम स्वयं थोड़ा-बहुत पैसा निवेश करें बिजनेस में. स्टॉक मार्किट बिजनेस निवेश का साधन मात्र हैं. हां मगर तीन चीज़ों पर ध्यान रख कर ही ये संभव है. एक वित्तीय ज्ञान, दूसरा सामाजिक सुरक्षा और तीसरा कम ब्याज दरें. इन तीनों पर सरकारें काफी समय से ध्यान दे रही हैं. आधार का अंतिम लक्ष्य सामाजिक सुरक्षा ही है. कुछ सज्जन एफडीआई का विरोध यह कह कर भी करते हैं कि बिजनेस से होने वाले लाभ को देश के बाहर ले जाया जाएगा. उन्हें समझना होगा कि हम खैरात नहीं मांग रहे. हम उस युग से काफी आगे आ चुके हैं, जब गेहूं तक बाहर से आता था. कुछ लोग मगर अभी उस युग में ही जी रहे हैं. हम अब ‘आईएमएफ़ से कर्ज नहीं लेते.
हजारों व्यापार विदेशी पूंजी से पोषित हैं. हमें लाभ होता है टैक्स का, रोजगार का, तकनीकी संवर्धन का. मोबाइल हो, वॉलेट हो, ओला हो, बैंक हों; सब में विदेशी निवेश हैं. इसी विदेशी पूंजी से हमें विदेशी मुद्रा मिलती है और हम सुरक्षा के लिए हथियार लेते हैं. लड़ाकू जहाज़ लेते हैं. हमने लाभ उठाया है विदेशी पूंजी का उसका सम्मान होना चाहिए. साथ ही, हमें खुद को विकसित करना चाहिए. हमें‘एफडीओ’ में तेज़ी से बढ़ना होगा. विगत में काफी सफल अधिग्रहण हुए हैं. उसका प्रचार होना चाहिए कि हमने विदेशों में कौन-कौन से बिजनेस खरीदे हैंI
स्रोत: द्वारा अनिल उपाध्याय: राष्ट्रीय सहारा