Today’s Editorial (Hindi)
देश की आर्थिक स्थिति कैसी है, इसे जानना इसलिए आवश्यक हो गया है कि हमारे सामने अर्थव्यवस्था को लेकर कई प्रकार की तस्वीरें पेश की जा रहीं हैं। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन का अग्रिम अनुमान है कि कृषि और विनिर्माण क्षेत्र के खराब प्रदर्शन की वजह से वर्तमान वित्तीय वर्ष में विकास दर 6.5 प्रतिशत रहेगा। अगर ऐसा होता है तो यह विकास दर का चार साल का सबसे निचला स्तर होगा। नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल की भी यह सबसे कम वृद्धि दर होगी। जैसा हम जानते हैं पिछले वित्त वर्ष यानी 2016-17 में विकास दर 7.1 प्रतिशत, 2015-16 में 8 प्रतिशत और 2014-15 में यह 7.5प्रतिशत था।
सांख्यिकी संगठन ने स्पष्ट किया है कि नोटंबदी और उसके बाद वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करने से आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई है। इस कारण कृषि, वन और मत्स्य पालन क्षेत्र की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में घटकर 2.1 प्रतिशत पर आने का अनुमान है, जो पिछले वित्त वर्ष में 4.9 प्रतिशत था। यही नहीं विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर भी घटकर 4.6 प्रतिशत पर आ सकता है, जो 2016-17 में7.9 प्रतिशत था। अगर विनिर्माण क्षेत्र कमजोर प्रदर्शन कर रहा है, कृषि एवं उससे जुड़ी गतिविधियां दुर्बल हैं तो फिर विकास दर के उछाल मारने का कोई कारण ही नहीं है। यह केवल केंद्रीय सांख्यिकी संगठन का ही आकलन नहीं है।
स्वयं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 30 दिसम्बर 2017 को लोकसभा में यह माना कि अर्थव्यवस्था में गिरावट आई है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि किसी देश की विकास दर विभिन्न वित्तीय एवं मौद्रिक स्थितियों पर निर्भर करती है। इसमें संरचनात्मक और विदेशी कारकों का भी योगदान रहता है। यह बात ठीक है कि 2016 में नियंतण्र अर्थव्यवस्था कमजोर रही, जिसका असर भारत पर भी पड़ा। यह भी सच है कि कंपनियों की कमजोर बैलेंस शीट और उद्योग जगत की सुस्ती से भी विकास दर प्रभावित हुई। जेटली ने जो कुछ कहा उसके अनुसार धीमी विकास दर के कारण उद्योगों एवं सेवा क्षेत्र की विकास में सुस्ती देखने को मिली है, जिसमें संरचनात्मक, बाहरी, राजकोषीय और मौद्रिक कारकों सहित कई कारण शामिल हैं।
उनका मानना था कि साल 2016 के दौरान नियंतण्र आर्थिक विकास की निम्न दर के साथ ही सकल घरेलू उत्पाद अनुपात में सकल निश्चित निवेश की कमी ने कार्पोरेट सेक्टर की बैलेंस सीट पर दबाव डाला है और उद्योग क्षेत्रों में कम ऋण वृद्धि भी 2016-17 में कम वृद्धि दर के लिए कुछ कारणों में से एक रही। यह उनका विश्लेषण है और इसको नकारा नहीं जा सकता है। हम उनके इस बात से भी सहमत हैं कि एक देश का आर्थिक विकास संरचनात्मक, बाह्य, वित्तीय और मौद्रिक कारकों सहित कई कारकों पर निर्भर करता है। किंतु यदि वे नोटबंदी को विकास गति धीमी करने का कारण नहीं मानते हैं, वे यह स्वीकार नहीं करते हैं कि नोटबंदी के प्रभावों से मुक्त हुए बिना जीएसटी को लाना अर्थव्यवस्था के लिए भारी पड़ा है तो फिर यह विश्लेषण पूरा नहीं हो सकता है।
हालांकि यह अस्थायी स्थिति है। सरकार ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें विनिर्माण, परिवहन और ऊर्जा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में की गई पहल, भारतमाला परियोजना,इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कानून, रियायती आवास को आधारभूत संचरना का दर्जा देने और बैंकों को संभालने के लिए मोटी राशि देने जैसे कदमों का उल्लेख भी किया जा सकता है। कई रिपोर्ट ऐसी हैं, जो भारत की अर्थव्यवस्था के बेहतर होने की भविष्वाणी कर रहीं हैं। एसोचैम ने वर्ष 2018 के लिए अपनी संभावनाएं जारी की हैं। इसने कहा है कि सितम्बर 2018 की तिमाही तक आर्थिक विकास 7 प्रतिशत के स्तर तक पहुंच सकता है।
उद्योग चेम्बर ने अपने आकलन के कारण गिनाते हुए कहा है कि यह सरकारी नीतियों में स्थिरता, अच्छे मॉनसून, औद्योगिक गतिविधियों एवं ऋण वृद्धि में तेजी और स्थिर विदेशी मुद्रा दर के अनुमानों पर आधारित हैं। जापान की वित्तीय सेवा प्रदाता कंपनी नोमुरा ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था साल 2018 में 7.5 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ सकती है। नोमुरा के अनुसार नये नोटों को चलन में लाने और नियंतण्र मांग में सुधार से विकास में कुछ सुधार अक्टूबर से दिसम्बर तिमाही में देखने को मिल सकता है। इसकी अनुसंधान नोट को देखिए तो उसमें साफ लिखा है कि ‘‘हम वृद्धि परिदृश्य को लेकर उत्साहित हैं। ब्रिटिश कंसल्टेंसी फर्म सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च (सीईबीआर) र्वल्ड इकोनॉमिक लीग टेबल ने 2018 में भारत की अर्थव्यवस्था के बारे में जो अनुमान लगाया है वह तो और उत्साहित करने वाला है।
उसने कहा है कि भारत 2018 तक फ्रांस और ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। आर्थिक तेजी में सस्ती ऊर्जा व तकनीक का अहम योगदान रहेगा। सीईबीआर का कहना है कि अगले 15 साल में दुनिया की 10 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में एशियाई देशों का दबदबा होगा। भारतीय अर्थव्यवस्था की तेजी भी इसी का हिस्सा है। सीईबीआर के उपाध्यक्ष डगलस मैक विलियम्स ने कहा कि कुछ अस्थाई रुकावटों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में क्षमता है कि वह फ्रांस और ब्रिटेन को पीछे छोड़ सके। इसने माना है कि नोटबंदी और जीएसटी से भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर थोड़ा शिथिल हुई थी। लेकिन अब यह उससे निकल रहा है।
ध्यान रखिए सरकार लगातार सूक्ष्म, लघु और मझोली इकाइयों (एमएसएमई) को बैंकों से मिलने वाले कर्ज में वृद्धि पर जोर दे रही है। पूंजी पर्याप्तता के लिहाज से मजबूत होकर बैंक एमएसएमई क्षेत्र को ज्यादा से ज्यादा कर्ज दे सकें। कॉरपोरेट सेक्टर को बैंकों से कर्ज नहीं मिल रहा है। एनपीए के चलते बैंक सतर्कता बरत रहे हैं। तो सरकार को बैंकों पर फोकस करना चाहिए एवं उन्हें सूक्ष्म, मझोले एवं लघु उद्योगों के साथ कृषि एवं उससे जुड़े कारोबारों के लिए अधिकाधिक कर्ज देने को मजबत करना चाहिए। वर्तमान आर्थिक ढांचे में विकास दर यहीं से उछाले मारना आरंभ करेगा।
स्रोत: द्वारा राष्ट्रीय सहारा