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भारतीय कृषि को कीमतों में अत्यधिक उतार-चढ़ाव, जलवायु के जोखिमों और ऋणग्रस्तता से जूझना पड़ रहा है। देश में ज्यादातर किसान (86 फीसदी) लघु एवं सीमांत हैं और उनकी कृषि जोत का आकार घटता जा रहा है। इससे उन पर अनिश्चितता के बादल गहरा रहे हैं। सरकार के पिछले दो बजट में कृषि क्षेत्र को प्रमुखता दी गई। कृषि को ज्यादा संसाधनों का आवंटन हुआ और सिंचित रकबे में बढ़ोतरी,मिट्टी का स्वास्थ्य सुधारने, कृषि जिंसों के प्रसंस्करण को बढ़ावा देने और उत्पादन जोखिमों से निपटने के लिए बहुत से कार्यक्रम शुरू किए गए। इसके बावजूद ऐसा लगता है कि किसानों की बदहाली धीरे-धीरे देश के सभी राज्यों में फैलती जा रही है। ऐसा लगता है कि ये सभी कार्यक्रम एवं योजनाएं अलग-अलग चल रहे हैं और इनमें कोई आपसी तालमेल नहीं है। ऐसे में अभी एक पांच सूत्री कार्यक्रम बनाया जाना चाहिए, जो कृषि क्षेत्र की दिक्कतें दूर करे और इस समय चल रहे सभी कार्यक्रमों को एक सूत्र में बांधे। ये पांच सूत्र इस तरह हैं-
आय में बढ़ोतरी: भारत में कृषि क्षेत्र में बदलावों की रफ्तार बहुत मंद है, इसलिए कृषि से ऊंची आय अर्जित करने की प्रक्रिया भी बहुत धीमी है। देश में कृषि का मुख्य मकसद किसानों की आय बढ़ाना नहीं बल्कि उत्पादन में बढ़ोतरी रहा है। सरकार ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य तय किया है। इसके लिए कई चीजों की जरूरत होगी: (1) बीज क्षेत्र और किसानों तक सूचनाएं पहुंचाने की व्यवस्था को मजबूत बनाकर तकनीकी सुधार को बढ़ावा देना। (2) ऊंची कीमत वाली जिंसों की बुआई को प्रोत्साहित करना और उत्पादन एवं विपणन केंद्रों को आपस में जोड़कर मूल्य शृंखलाओं का विकास करना। (3) ऐसी व्यवस्था बनाना, जिससे कृषि उपज की कीमतों में गिरावट के समय किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल सके। इस लक्ष्य की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि अनुबंध कृषि, क्लस्टर (छोटे-छोटे खेतों को मिलाकर एक बड़ा भूखंड बनाना) खेती, किसान उत्पादक संगठन और स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहित कर किसानों को उत्पादन एवं विपणन के लिए किस तरह एकजुट किया जाता है।
रोजगार पैदा करना: भारत के हालात के आकलन सर्वेक्षण में कहा गया है कि अगर किसानों को रोजगार का कोई दूसरा विकल्प मिले तो उनमें से 40 फीसदी से ज्यादा खेती को छोडऩे के लिए तैयार हैं।कृषि पर आश्रित लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है और यह नियमित रोजगार के अवसर नहीं मुहैया कराती है। ग्रामीण क्षेत्रों में नियमित रोजगार नहीं मिलने के कारण ग्रामीण आबादी, विशेष रूप से युवा बेहतर विकल्पों की तलाश में शहरों में आ रहे हैं। वर्ष 2020 तक देश की करीब 34 फीसदी आबादी 15 से 34 आयु वर्ग की होगी। उनमें से 70 फीसदी से अधिक ग्रामीण इलाकों में रहते हैं।
इस ग्रामीण युवा वर्ग की आकांक्षाएं पूरी करने और कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था के हालात सुधारने के लिए उनकी ऊर्जा और उत्साह का सदुपयोग किया जाना चाहिए। कृषि ग्रामीण इलाकों में युवाओं की बढ़ती संख्या को नहीं खपा पाएगी। इसके लिए कई प्रोत्साहनों की दरकार है- (1) कच्चे एवं प्रसंस्कृत माल की एग्रीगेटिंग (इसका एक अच्छा उदाहरण लिज्जत पापड़ है, जिसमें 43,000 से अधिक महिलाओं को रोजगार मिला हुआ है)। (2) कृषि-प्रसंस्करण, कृषि सलाह, कृषि एवं ग्रामीण परिवहन में स्व-रोजगार को बढ़ावा देना। (3) किसानों को किराये पर कृषि मशीनरी देने की सेवाओं, द्वितीयक और तृतीयक प्रसंस्करण में निजी क्षेत्र की भागीदारी। (4) हर क्षेत्र के हिसाब से सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योगों में गैर-कृषि रोजगार और इन उद्योगों को बड़े विनिर्माण क्षेत्रों से जोडऩा। (5) सरकारी कार्यक्रमों,स्कूलों और कृषि सलाह सेवाओं में भागीदारी।
जोखिमों में कमी: पिछले कुछ वर्षों से कृषि में जोखिम बढ़ रहा है। उत्पादन और कीमत, दोनों जोखिमों की वजह से कृषि क्षेत्र की मुश्किलें बढ़ रही हैं। उत्पादन के जोखिमों के तहत सूखा, बाढ़, तापमान में घटत-बढ़त और बेमौसम बारिश एवं ओलावृष्टि में बढ़ोतरी हो रही है और इनसे कृषि उत्पादन प्रभावित हो रहा है। हालांकि सामान्य वर्षों के दौरान भी कृषि जिंसों की कीमतें तेजी से गिरती हैं, जिससे किसानों की आमदनी पर असर पड़ता है। हालांकि उत्पादन नुकसान कुछ भरपाई के लिए प्रधानमंत्री कृषि बीमा योजना चल रही है। यह बीमा योजना अच्छी है, लेकिन इसमें हर्जाने की राशि पर्याप्त नहीं है और यह कीमतों में गिरावट के जोखिमों को कवर नहीं करती है। इसलिए सरकार को प्रधानमंत्री जलवायु भरपाई योजना शुरू करनी चाहिए, जो उत्पादन और कीमत दोनों के जोखिमों को कवर करे। इस योजना में जलवायु स्मार्ट कृषि, मूल्य संवर्धित मौसम सलाह सेवाएं, कृषि बीमा के प्रभावी क्रियान्वयन और न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने की योजनाएं शामिल की जा सकती हैं।
कृषि के लिए बुनियादी ढांचा विकास: कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी के अनुरूप कृषि का बुनियादी ढांचा विकसित नहीं किया गया है। इस बुनियादी ढांचे में कृषि बाजार, शीत भंडारगृह और कृषि प्रसंस्करणआदि शामिल हैं। कृषि के लिए बुनियादी ढांचा तैयार करने की रफ्तार उससे कम है,जो पूरी कृषि खाद्य प्रणाली में सुधार के लिए जरूरी है। बीते वर्षों में कृषि जिंसों के उत्पादन पर ज्यादा जोर दिया गया है।कृषि क्षेत्र के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं होने के कारण कृषि-खाद्य जिंसों की आपूर्ति शृंखलाएं असंगठित क्षेत्र के हाथ में हैं, जो बिखरा हुआ और अकुशल है। संगठित निजी क्षेत्र कृषि में धीरे-धीरे आ रहा है क्योंकि कृषि का बुनियादी ढांचा विकसित करना व्यावसायिक रूप से व्यावहारिक नहीं है।
सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के जरिये कृषि का बुनियादी ढांचा विकसित करने में अच्छे आर्थिक और सामाजिक लाभ की भरपूर संभावनाएं हैं। सरकार को कृषि का बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तौर-तरीके बनाने के लिए एक आयोग गठित करना चाहिए। इस बुनियादी ढांचे में ग्रामीण कृषि बाजार, शीत भंडारगृह, सतही सिंचाई और किसानों को तकनीकी सलाह सेवा आदि शामिल हैं। इसके बारे में राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण, हवाई अड्डों के निर्माण एवं परिचालन और बिजली के वितरण में पीपीपी के शानदार रिकॉर्ड से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। केंद्र सरकार राज्यों को कृषि का बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए पीपीपी मोड की अच्छी परियोजनाओं में मदद कर सकती है।
ग्रामीण जीवन की गुणवत्ता में सुधार: ग्रामीण भारत अब भी साफ-सफाई, पेयजल, जल निकासी, स्कूल और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाओं से वंचित है। प्रधानमंत्री ने तीन साल पहले संसद और राज्य विधानसभाओं के प्रत्येक सदस्य को एक गांव को गोद लेने और इसे आदर्श गांव में बदलने का आग्रह किया था। इसका मुख्य मकसद ग्रामीण इलाकों में सभी बुनियादी सेवाएं मुहैया कराना था ताकि ग्रामीण आबादी के जीवन स्तर में सुधार आए। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने पुरा (प्रोविजन ऑफ अर्बन अमेनिटीज टू रूरल एरियाज) शब्द गढ़ा था। इसका मकसद ग्रामीण इलाकों में शहरी बुनियादी ढांचा और सेवाएं मुहैया कराना था ताकि ग्रामीण इलाकों में आर्थिक अवसर पैदा किए जा सकें। ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन स्तर सुधारने के लिए इस योजना को फिर से चालू किया जा सकता है। हालांकि देश मेंसामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए बहुत सी योजनाएं हैं, लेकिन उनके बेहतर असर के लिए उन्हें एक सूत्र में पिरोना जरूरी है। अब कृषि क्षेत्र को उबारने और गरीब लोगों की क्रय शक्ति को सुधारा जाना चाहिए, ताकि देश की आर्थिक वृद्धि में तेजी लाई जा सके। यह काम कुछ अहम क्षेत्रों पर ध्यान देकर और सभी कार्यक्रमों को एक सूत्र में पिरोकर किया जा सकता है।
स्रोत: द्वारा पी के जोशी: बिज़नेस स्टैण्डर्ड