दिल्ली का लेफ्टिनेंट गवर्नर या उप-राज्यपाल, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली का संवैधानिक प्रमुख है. इस पद का सृजन पहली बार सितंबर 1966 में किया गया था. दिल्ली के सबसे पहले लेफ्टिनेंट गवर्नर आदित्य नाथ झा, आईसीएस थे, जबकि इसके 21वें और वर्तमान उप-राज्यपाल श्री अनिल बैजल हैं. दिल्ली के उप-राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा 5 वर्ष के लिए की जाती है.
भारतीय संविधान के भाग VIII के अंतर्गत अनुच्छेद 239-241 में केंद्र शासित प्रदेशों के सम्बन्ध में उपबंध हैं. हालाँकि सभी केंद्र शासित प्रदेश एक ही श्रेणी के हैं लेकिन उनकी प्रशासनिक पद्धित में एकरूपता नहीं है.
प्रत्येक केंद्र शासित प्रदेश का प्रशासन राष्ट्रपति के द्वारा संचालित होता है जो कि एक प्रशासक के माध्यम से किया जाता है. ध्यान रहे कि केंद्रशासित प्रदेश का प्रशासक, राष्ट्रपति का एजेंट होता है ना कि राज्यपाल की तरह राज्य का प्रमुख.
इस समय भारत के तीन राज्यों (दिल्ली, पुदुचेरी और अंडमान निकोबार द्वीप) में उपराज्यपाल के माध्यम से शासन किया जा रहा है जबकि चंडीगढ़, दमन एवं दीव और लक्षद्वीप में प्रशासक के माध्यम से शासन किया जा रहा है.
केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली और पुदुचेरी में क्रमशः 1962 1963 में विधान सभा गठित की गयी और मंत्रिमंडल, मुख्यमंत्री के अधीन कर दिया गया. सन 1991 में 69वें संविधान संशोधन से दिल्ली को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया और इसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र घोषित किया गया, साथ ही लेफ्टिनेंट गवर्नर को दिल्ली का प्रशासक नामित किया गया था .
ज्ञातव्य है कि 70 सदस्यीय दिल्ली विधान सभा को राज्य सूची और समवर्ती सूची पर कानून बनाने का अधिकार है लेकिन “जन, जमीन और पुलिस” पर दिल्ली विधानसभा कानून नहीं बना सकती. यह पूरी तरह से केंद्र का अधिकार क्षेत्र है.
ज्ञातव्य है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री को राष्ट्रपति नियुक्त करता है ना कि उप राज्यपाल. अन्य मंत्रियों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति भी द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाती है. दिल्ली के सभी मंत्री राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत कार्य करते हैं लेकिन मंत्रिमंडल सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है. हालाँकि दिल्ली सरकार के पूरे मंत्रिमंडल को शपथ दिल्ली का उप-राज्यपाल ही दिलाता है.
दिल्ली अधिनियम,1991 के अनुसार लेफ्टिनेंट गवर्नर, दिल्ली के अधिकार इस प्रकार हैं;
- सेक्शन 6 के अंतर्गत
दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर, या उप राज्यपाल को दिल्ली विधानसभा के सत्र को बुलाना, विधानसभा का विघटन और स्थगन करने का अधिकार है. उसे यह सुनिश्चित करना होता है कि दो विधान सभा सत्रों के बीच 6 माह से अधिक का अंतर नही होना चाहिए.
- सेक्शन 9 के अंतर्गत
उप राज्यपाल को किसी मुद्दे पर राज्य विधान सभा को सन्देश भेजने का अधिकार है. यह सन्देश किसी लंबित विधेयक के संबंध में या किसी अन्य मुद्दे पर भी हो सकता है. इस सन्देश पर हुई कार्यवाही की रिपोर्ट राज्य विधानसभा को उप-राज्यपाल को देनी होती है.
- सेक्शन 22 के अंतर्गत
वित्तीय बिलों के लिए विशेष प्रावधान:
विधान सभा में किसी बिल को उप-राज्यपाल की सहमती के बिना पेश नही किया जायेगा यदि वह बिल निम्न में से किसी मुद्दे से सम्बंधित है;
(a). किसी भी कर को लगाना, कर को हटाना, कर में छूट देना, परिवर्तन या विनियमन करना
(b). वित्तीय दायित्वों से सम्बंधित किसी भी कानून में परिवर्तन करना
(c). राज्य की समेकित निधि से किसी राशि का विनियमन करना (appropriation of money)
(d). यह तय करना कि कौन सा खर्च राज्य की समेकित निधि (Consolidated Fund of the Capital) पर भारित होगा अर्थात किसी खर्चे का भार राज्य की समेकित निधि पर डालना या ऐसे किसी खर्चे की राशि में बढ़ोत्तरी करना
(e). राज्य की समेकित निधि में किसी धन की प्राप्ति होना या इस निधि से किसी राशि को बाहर निकलना. अर्थात मुख्यमंत्री, उपराज्यपाल की अनुमति के बिना इस निधि से राशि बाहर नही निकाल सकता है. अरविन्द केजरीवाल ने स्वयं एक बार कहा था कि वे अपनी मर्जी से एक पेन भी नहीं खरीद सकते हैं. यह बात यहाँ पर सही साबित हो गयी है.
- सेक्शन 24 के अंतर्गत प्रावधान
किसी बिल को पास करने का प्रावधान;
यदि किसी बिल को राज्य विधानसभा द्वारा पारित कर दिया गया है तो उसे उप-राज्यपाल की अनुमति के लिए पेश किया जाना चाहिए. उप-राज्यपाल के पास यह अधिकार है कि वह उस बिल को;
- स्वीकार कर ले
- अस्वीकार कर दे
- राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रख ले
यदि उप-राज्यपाल किसी बिल को अस्वीकार कर देता है और राज्य विधानसभा इसे फिर से (परिवर्तन के बाद या बिना परिवर्तन के) उप राज्यपाल के पास भेज देती है तो वह इस बिल को या तो स्वीकार करेगा या फिर राष्ट्रपति के विचार ले लिए रख लेगा या फिर इस तथ्य के आधार पर अस्वीकार कर सकता है कि यदि यह बिल कानून बन गया तो हाई कोर्ट की ताकत को कम कर देगा.
यहाँ यह बताना जरूरी है कि दिल्ली के पास अपना लोक सेवा आयोग (Public Service Commission) नहीं है. सरकार इसे गठित कर सकती है, इसी कारण अभी IAS,IPS IRS अफसरों को यहां तैनात किया गया है. नियम के अनुसार सारे अफसर उप-राज्यपाल का ही आदेश मानते हैं. उप-राज्यपाल केवल दो स्थितियों में अपने स्वा-विवेकाधिकार से फैसले ले सकते हैं, जब राज्य सरकार संविधान के अनुसार ना चल रही हो या फिर दिल्ली को किसी तरह का खतरा हो.
उप-राज्यपाल और मंत्री परिषद् के बीच किसी मुद्दे पर मतभेद होने की दशा में; उप-राज्यपाल उस मुद्दे को राष्ट्रपति के पास भेज सकता है ऐसी दशा में राष्ट्रपति क्षेत्र के प्रशसन के लिए आवश्यक नियम बना सकता है. दूसरे शब्दों में संवैधानिक विफलता की स्थिति में राष्ट्रपति उस क्षेत्र में अनुच्छेद 356 या राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्र के नेतृत्व में बनी संविधान बेंच ने टिप्पणी कि दिल्ली का उप-राज्यपाल ही राज्य में ज्यादा शक्ति रखता है और अन्य राज्यों का राज्यपाल केवल मंत्री समूह की सलाह पर काम (कुछ मामलों को छोड़कर) करता है जबकि एलजी के लिए यह अनिवार्य नहीं है.
इस प्रकार आपने पढ़ा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नही है इसी कारण से लोगों की चुनी गयी सरकार भी अपनी मर्जी के हिसाब से फैंसले नहीं ले सकती है उसे ज्यादातर कार्यों के लिए उप राज्यपाल के अनुमति लेनी पड़ती है जो कि राष्ट्रपति के इशारे पर काम करता है और यदि केंद्र और राज्य में दो अलग-अलग पार्टियों की सरकारें हैं तो राज्य सरकार के लिए काम करना काफी मुश्किल हो जाता है. शायद यही कारण है कि दिल्ली की वर्तमान केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल अनिल बैजल के बीच हमेशा खींचातानी की खबरें आती रहतीं हैं.