Today’s Editorial (Hindi)

विवादों के हल तक चीन सीमा पर मची रहेगी हलचल

स्रोत: द्वारा अजय शुक्ला: बिज़नेस स्टैण्डर्ड

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद अत्यंत जटिल है। यह ऐतिहासिक विवाद 3,500 किलोमीटर लंबी सीमा में विस्तारित है और इसके कई स्तर हैं। हाल ही में एक मामूली असहमति के बाद दोनों देशों के गश्ती दल फिर आमने-सामने आ गए। यह वाकया गत 16 जून को सिक्किम-तिब्बत सीमा पर हुआ। इसके बाद चीन ने नाथू ला दर्रे के मार्ग से होने वाली भारतीय श्रद्घालुओं की कैलास मानसरोवर यात्रा रोक दी। इस बार मुद्दा है 4,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित दोकलम नामक स्थान की संप्रभुता का, जिसका दायरा बमुश्किल 100 वर्ग किमी है। भारत का दावा है कि तिब्बत के पठार के दाहिनी ओर चीनी क्षेत्र में स्थित चुंबी घाटी, दोकलम के उत्तर में बतांग ला पास के समीप समाप्त हो जाती है। चीन दोकलम पर भी दावा कर रहा है। इस सीधे विवाद में भूटान की वजह से जटिलता आ रही है क्योंकि सिक्किम-तिब्बत और भूटान तीनों की सीमा यहां मिलती हैभूटान का दावा भारत के पक्ष में है

लद्दाख को छोड़ दिया जाए तो भारत और चीन की सीमा, जिसे वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) कहा जाता है, वह मोटे तौर पर हिमालय के जलविभाजक क्षेत्र से तय होती है। यहां ऐसे 14 विवाद हैं। सबसे आम विवाद यह है कि क्या कोई रिज लाइन जल विभाजक क्षेत्र बनाती है। सन 1962 की जंग जिमिनथांग के करीब भड़की थी। उस वक्त विवाद यह था कि क्या भारत के दावे के मुताबिक सीमा थाग्ला रिज के समांतर चलती है या फिर चीन के दावे के मुताबिक हाथुंगला रिजलाइन के समांतर। सन 1986 में सुमदोरॉन्ग चू में विवाद हुआ। भारत ने हजारों जवान विवादित स्थान पर तैनात कर दिए।

यह विवाद थांगदोरॉन्ग मैदान से जुड़ा था जो तवांग के करीब है। भारत का दावा था कि यहां जलविभाजक रेखा उस चारागाह के उत्तर में थी जबकि चीन का दावा था कि यह उसके दक्षिण में थी। भारत-चीन सीमा के पूर्वी छोर पर वालॉन्ग में असहमति इस बात पर थी कि कौन सी रिज लाइन जल विभाजन तय करती है। ये छोटे मोटे विवाद मिलकर एक बड़ा सीमा विवाद उत्पन्न करते हैं जिसमें चीन समूचे अरुणाचल प्रदेश पर दावा करता है जबकि भारत का दावा अक्साई चिन पर है। मौजूदा विवाद भारत और चीन दोनों के लिए सामरिक महत्त्व की जगह है। भारतीय सैन्य नीतिकार इस बात को लेकर चिंतित हैं कि अगर चीन यूं ही आगे बढ़ता रहा तो वह सिलिगुड़ी कॉरिडोर के करीब आ जाएगा

यह कॉरिडोर भारत को नेपाल और बांग्लादेश के बीच एक राह मुहैया कराता है। देश के गंगा-जमुनी मैदान को पूर्वोत्तर के सात राज्यों से जोडऩे वाली राह यही है। हालांकि चीन के लिए भारत की मजबूत रक्षा पंक्ति को भेदना आसान नहीं होगा। उसे आगे बढऩे के लिए घने और मुश्किल भरे जंगलों से गुजरना होगा। इस बीच अगर मान भी लिया जाए कि चीन सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर काबिज हो जाएगा तो भी भारत आसानी से नेपाल और बांग्लादेश के जरिये नया रास्ता बना सकता है। चीन अपनी सीमाओं को लेकर बहुत संवेदनशील है। चुंबी घाटी का मामला इनमें सबसे अधिक अहम है। भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान इसकी अनदेखी करता रहा है। सिक्किम के उत्तर से पूर्व की ओर यह घाटी तिब्बत को अलग करती है। रक्षा विशेषज्ञ चुंबी घाटी पर नियंत्रण को भारत के माउंटेन स्ट्राइक कोर के लिए अहम मानते हैं।  तो चीन दोकलम पठार को लेकर इतना प्रतिबद्ध क्यों है? चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि 1890 में सिक्किम और तिब्बत को लेकर जो एंग्लो-इंडियन कन्वेंशन हुआ था उसमें माउंट जिपमोची को भारत-चीन और भूटान तीनों के जंक्शन के रूप में उल्लिखित किया गया था। यह सच है कि चीन औपनिवेशिक समझौतों को मान्यता नहीं देता लेकिन सच यह है कि सन 1890 में उसने भी समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। चीन की दलील है कि सन 1959 में चाऊ एन लाई को लिखे पत्र में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी 1890 के समझौते का समर्थन किया

चीन का यह भी दावा है कि यादॉन्ग के याक चराने वाले लंबे समय से दोकलम के मैदानों का इस्तेमाल करते रहे हैं। जबकि भूटान के याक चराने वाले तो यादॉन्ग वालों को घास कर भी चुकाते रहे। चीन के विदेश मंत्रालय का दावा है कि तिब्बत के दस्तावेजों में अभी भी इस कर की रसीदें मिल जाती हैं।  इस बार दोनों देश अडिग हैं। हम इससे पहले लद्दाख और चुमार में ऐसी तनातनी देख चुके हैं। बीते एक दशक में भारत के रक्षात्मक रुख में बदलाव आया है। लद्दाख और पूर्वोत्तर में दो सैन्य टुकडिय़ां तैनात की गई हैं। देश की हवाई रक्षा क्षमताओं में भी इजाफा किया जा रहा है। चीन सड़क, बंकर आदि बनाकर और दोकलम पर दावे के रूप में दबाव बना रहा है, वहीं भारत की ओर से सेना इसका प्रतिरोध कर रही है।

 

प्रश्न यह है कि क्या सेना की नई आक्रामकता गश्ती दलों के संघर्ष को गोलीबारी में बदल सकती है और यह व्यापक लड़ाई का रूप ले सकता है? वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सन 1975 से कोई गोलीबारी नहीं हुई है। भारत और चीन ने सन 1993 में एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। चीन ने अन्य समझौतों की कोशिश भी की लेकिन इसके बावजूद यह बात अबूझ है कि वह वास्तविक नियंत्रण रेखा को सुसंगत बनाने की भारत की मांग का प्रतिरोध करता आ रहा है। सीमा विवाद को हल करने की दिशा में यह अहम साबित होगा। अगर ऐसा समझौता हुआ तो दोनों देशों के बीच गश्ती झगड़े भी खत्म होंगे और राष्टवादी भावनाओं का ज्वार भी नहीं उमड़ेगा। वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर भारत की सक्रियता चीन को मामले के हल के लिए प्रोत्साहित कर रही है। लेकिन फिर एक दूसरे की आक्रामकता से निपटने में उनको काफी संतुलन दिखाना पड़ रहा है। जब तक यह समझौता नहीं हो जाता, भारत को ऐसे संकटों से निपटने की जुगत करनी होगी।

Today’s Editorial (Hindi)

जीएसटी को सही से समझने का वक्त

 वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी को लेकर देश भर में उत्सुकता का भाव है। लोग समझना चाहते हैं कि जीएसटी को आजादी के बाद का सबसे बड़ा कर सुधार क्यों माना जा रहा है? ऐसे में जीएसटी के स्वरूप, उसके फायदों से लेकर टैक्स की वसूली और रिटर्न भरने की प्रक्रिया को समझना खासा उपयोगी होगा। फिलहाल केंद्र सरकार द्वारा कई अलग-अलग वस्तुओं पर उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त सीमा शुल्क, विशेष अतिरिक्त शुल्क जैसे कई अलग-अलग टैक्स लगाए जाते हैं और सेवाओं पर सेवा कर यानी सर्विस टैक्स की व्यवस्था है। वहीं राज्य सरकारों द्वारा वैट, केंद्रीय बिक्री कर, खरीद कर, मनोरंजन कर, लॉटरी टैक्स, चुंगी कर, प्रवेश कर जैसे अलग-अलग टैक्स लगाए जाते हैं। इनके अलावा केंद्र और राज्य द्वारा अलग-अलग प्रकार के उपकर यानी सेस और सरचार्ज यानी अधिभार भी लगाए जाते हैं। जीएसटी में अब ये सभी टैक्स खत्म होकर एक ही टैक्स के रूप में रह जाएंगे जो सभी वस्तुओं और सेवाओं पर लागू होगा। इसके तहत एक वस्तु पर देश भर में टैक्स की दर एकसमान होगी। केंद्र और राज्यों द्वारा लगाए जाने वाले तमाम अलग-अलग करों को मिलाकर एक कर बनाने के तमाम फायदे होंगे। इससे दोहरे कराधान की समस्या हल हो जाएगी और एकीकृत राष्ट्रीय बाजार के निर्माण की राह खुलेगी। उपभोक्ताओं के नजरिये से देखें तो उन्हें सबसे बड़ा लाभ यही होगा कि वस्तुओं पर लगने वाले कर के बोझ में कमी आएगी। वर्तमान में कर का यह बोझ 25 से 30 प्रतिशत के दायरे में है। जीएसटी लागू होने से भारतीय उत्पादक घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार की प्रतिस्पर्धा में मजबूती से टिक सकेंगे। तमाम अध्ययनों से भी संकेत मिलते हैं कि इससे आर्थिक विकास पर भी बहुत उत्साहजनक प्रभाव पडे़गा

जीएसटी की दर सहित सभी महत्वपूर्ण मसले तय करने का अधिकार जीएसटी परिषद को दिया गया है। परिषद की बैठक में कुछ अहम फैसले भी हुए हैं। इसमें सभी वस्तुओं के लिए टैक्स की चार दरें तय की गई हैं। इसके तहत 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत की दरें प्रभावी होंगी। यह भी तय किया गया है कि कुछ वस्तुओं और सेवाओं के ऊपर कोई टैक्स नहीं लगाया जाएगा। ये वस्तुएं और सेवाएं रियायत वाली श्रेणी में आएंगी। सोना-चांदी और उससे बने आभूषणों के लिए एक विशेष दर होगी जो अभी तय नहीं हुई है। निर्यात वस्तुओं पर देश के भीतर चुकाए टैक्स का पूरा रिफंड मिलेगा। आयात की गई वस्तु पर कस्टम ड्यूटी के अलावा उतना ही जीएसटी लगेगा जितना देश में जीएसटी के तहत उस वस्तु पर लागू है। जीएसटी लागू करने के बाद व्यापारियों और उत्पादकों को अब एक ही टैक्स प्रक्रिया का पालन करना होगा। सबसे बड़ा फायदा छोटे व्यापारियों को दिया गया है। अभी देश के अधिकांश राज्यों में 10 लाख रुपये से ऊपर वाले व्यापारियों को वैट भरना पड़ता है। जीएसटी में विशेष श्रेणी के पहाड़ी इलाकों वाले राज्यों को छोड़कर शेष राज्यों में यह सीमा 20 लाख रुपये कर दी गई है। इसका अर्थ यह हुआ कि जिस कारोबारी का सालाना कारोबार यानी टर्नओवर 10 लाख से 20 लाख रुपये के दायरे में था उसे भी अब कोई टैक्स नहीं देना होगा और न ही उसके लिए पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। अभी जिनके पास वैट, सेवा कर और एक्साइज नंबर हैं उनमें से अधिकांश लोगों का जीएसटी प्रक्रिया में पंजीकरण हो चुका है।

जीएसटी में प्रत्येक कारोबारी को महीने में एक बार मुख्य रिटर्न भरना होगा और अपनी टैक्स अदायगी दर्शानी होगी। किसी भी वस्तु या सेवा के ऊपर जो भी टैक्स चुकाना है, उसमें से खरीदारी पर लगा जो टैक्स भर दिया गया है उसका पूरा इनपुट टैक्स क्रेडिट प्रत्येक कारोबारी को अपने आप ही मिलेगा। रिटर्न फाइल करने की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन है। अगर आप अपने हिसाब-किताब जीएसटीएन द्वारा दी गई एक्सेल शीट में रखेंगे तो हर महीने वही हिसाब-किताब अपने आप ऑफलाइन टूल की मदद से रिटर्न में परिवर्तित हो जाएगा। अगर कोई व्यापारी अपना पूरा सामान सिर्फ खुदरा ग्राहकों को बेचता है यानी वह बीटूसी कारोबार में ही सक्रिय है तो ऐसे कारोबारी के लिए रिटर्न भरने की प्रक्रिया बहुत सरल होगी जिसमें उसे दर के अनुसार टर्नओवर दिखाना होगा। अगर कोई व्यापारी कंपोजिशन योजना का लाभ उठाता है और उसका टर्नओवर 50 लाख रुपये से कम है तो उसे हर महीने नहीं, बल्कि तीन महीने में रिटर्न भरना होगा और उसे अपने कुल टर्नओवर में दिखाना होगा।

जो व्यापारी बिजनेस-टू-बिजनेस यानी बीटूबी वाले थोक कारोबार में सक्रिय हैं उन्हें बिक्री के प्रत्येक बिल का पूरा ब्योरा रिटर्न में देना होगा। ऐसे कारोबारियों को हर महीने की 10 तारीख तक जीएसटी वेबसाइट पर रिटर्न के फॉर्म में जानकारी मुहैया करानी होगी। इसकी पूरी जानकारी उसके खरीदारों को जीएसटी ऑनलाइन अकाउंट यानी जीएसटीआर-2 में अपने आप मिल जाएगी। खरीदार व्यापारी एक क्लिक में उस व्यापारी का पूरा रिकॉर्ड जांच सकता है, क्योंकि कंप्यूटर पर पूरी तस्वीर साफ हो जाएगी। कारोबारी की कर देनदारी और इनपुट टैक्स क्रेडिट की पूरी विस्तृत जानकारी जीएसटी सिस्टम द्वारा स्वत: तैयार कर शुद्ध कर देनदारी के साथ दिखाई जाएगी। कर देनदारी और इनपुट टैक्स क्रेडिट के बीच के अंतर की भरपाई व्यापारी को करनी होगी। इसके बाद उस कारोबारी को हर महीने की 20तारीख तक कंप्यूटर द्वारा तैयार अंतिम रिटर्न को जीएसटीआर-3 पर क्लिक कर उसे जमा करना होगा। बिजनेस-टू-बिजनेस लेनदेन में ऐसी व्यवस्था की गई है जिसे हम इनपुट टैक्स क्रेडिट रिवर्सल कहते हैं। इसका अर्थ है इनपुट टैक्स क्रेडिट को वापस लौटाना। इसके बारे में काफी लोगों ने चिंता जताई है, लेकिन पूरी प्रक्रिया समझने पर ये चिंताएं पूरी तरह दूर हो जाएंगी।

जैसा कि पहले समझाया गया है कि आपने जिससे सामान खरीदा है उसने वह लेन-देन अपने मासिक रिटर्न में महीने की 10 तारीख तक दिखा दिया है तो आप को इनपुट टैक्स क्रेडिट की सुविधा मिल जाएगी। यदि आपको सामान बेचने वाले व्यक्ति ने उस बिल को अपने रिटर्न में नहीं दिखाया है तब भी आपको एक और मौका मिलेगा कि आप उसे अपने जीएसटीआर-2 रिटर्न में महीने की 15 तारीख तक दिखा दें और ऐसा करने से उस महीने में आपके दावे के मुताबिक इनपुट टैक्स क्रेडिट मिल जाएगा। इसके बाद आपको उस व्यापारी से संपर्क कर उसे समझाना है कि वह उस लेन-देन को अपने रिटर्न में दिखाए ताकि आपको जो इनपुट टैक्स क्रेडिट मिल गया है उसे अगले महीने वापस नहीं करना पड़ेगा। इसके लिए आपको पूरे 30 दिन का समय मिलेगा और उसके बावजूद अगर आपको सामान बेचने वाला व्यापारी इस लेन-देन को स्वीकार नहीं करता है और अपने रिटर्न में नहीं दिखाता है तब अगले महीने आपको मिल चुके इनपुट टैक्स क्रेडिट को वापस किया जाएगा। प्रत्येक कारोबारी का यह फर्ज है कि ऐसे ही कारोबारियों के साथ ही लेन-देन करें जो आपसे टैक्स वसूलने के बाद उसे सरकारी खजाने में जमा कराएं। व्यापारियों के व्यवहार और उनके रिकॉर्ड को देखते हुए उन्हें अनुपालन रेटिंग भी दी जाएगी जो सार्वजनिक दायरे में रहेगी जिसे कोई भी व्यापारी देख सकता है ताकि बार-बार गड़बड़ करने वालों से सावधान रहा जा सके और उनके साथ कारोबार करने से बचा जाए।

स्रोत: द्वारा हसमुख अढिया: दैनिक जागरण

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